विशेष रुप से प्रदर्शित

जिंदगी , मंजिल

वो अपनी कब्र तक जा पहुंचा,
जिंदगी की तलाश करते करते।

जिंदगी से थक गया है वो,
जन्नत की तलाश करते करते।

कई जवाब मिले उसको रास्ते में,
रुक गया अब वो सवाल करते करते।

शायद अपनी मंजिल ढूंढ रहा था,
आग का दरिया पार करते करते।

ये मिट्टी ही मंजिल थी उसकी,
समझ गयी उसकी लाश मरते मरते।।

– रवि चांदना

हार-जीत, हौसला

इस हार को हमने पहले भी देखा है,
जीत का स्वाद भी चखा है,

युद्ध में नाम उसी का अमर है ,
जिसने लड़ने का हौसला रखा है।

लड़ते नही इंसान युद्ध के मैदानों में ,
ये लड़ाई उनके होसलों की है,

पंछी नही उड़ता पँखो से,
उड़ता उसका हौसला देखा है।।

– रवि चांदना